मैंने आज फिरसे अपने चाली वाले घर का दरवाज़ा खटखटाया। सुबह का वक़्त था। दरवाज़ा खुला। बहोत दिनों के बाद मेरी माँ मुझे नज़र आ रही थी। उसके आँखे थके हुए लग रहे थे। बाल कितने दिन से धुले नहीं थे उनके। मैली सी साड़ी बदन पे कहने के लिए लपेटी गयी थी। घर का सामान एक भी पहले जैसे जगह पे नहीं था। पता नहीं कितने दिनों से मेरा इंतज़ार करती बैठी होगी। मैं अंदर आया। मगर अभी तक उसने मुझे पहचाना नहीं था।
"बेटी, कोण चाहिए तुम्हे। किसीको ढूंढ रही हो क्या ?", बड़ी ही मधुरता से सेहमी आवाज़ में वो पूछ रही थी।
"क्या आपने मुझे पहचाना नहीं ?" मैंने चेहरे पर हलकी सी मुस्कान ला कर पूछा। माँ को मुझे पहचानना अब काफी मुश्किल था। में १ साल के बाद घर लौटा था। ऊपर से सब चेंज हो गया था। मेरी आवाज़ , मेरे कपडे, मेरा रहन-सहन , मेरी अदा और मेरा जेंडर !!
जी हां। जब अब मैं घर आया था तो में दूसरी बार लड़कीयो के कपड़ो में था। मगर इस बार में हमेशा से लड़की बन गया था। बेशक अभी तक मेरे शरीर को ऑपरेशन करके लड़की बनाया था मगर मुझे पता था की में हमेशा से यही चाहता था। लड़की की शरीर में आने के बाद चीज़े काफी आसान हो गयी है। मगर लड़का होके लड़की बनके रहना इसमें भी कुछ और बात थी। अभी मैं मेरी माँ के सामने एक हैंडलूम नीली साड़ी में खड़ा था। शार्ट जैकेट ब्लाउज डार्क ब्लू रंग का। लम्बे काले स्ट्रेट बाल और गले में फैंसी नेकलेस। नार्मल मेकअप और पूरी वैक्स की हुयी पतली बॉडी। उसपे हील की लम्बी सैंडल। कोण कैसे पहचान सकता है की में अतुल ही हु।
मुझे याद है उस दिन मुझे मेरी मैडम ने ऑफिस बुलाया था और सर के लिए मुझे खुदको बकरा बना के हलाल होने भेज दिया था। मुझे याद है उस दिन की बैचेनी। मैंने पैसो के लिए अपने आप को बेच दिया था। बहोत ही घिन आ रही थी मुझे उस दिन। मगर मैं शुक्रिया करता हु भगवान् का की उसी चीज़ के वजह से मुझे आज सब कुछ मिल गया। और आज मैं अपनी माँ को भी इसी कामयाबी में शामिल कराने मेरे नए घर में ले के जाने वाला हु।
उस दिन की बात है जब सर का बर्थडे था। मैं और मैडम ने मेरे लिए एक पटिआला सूट , एक बेबी डॉल सूट और एक पैडेड सफ़ेद ब्लाउज और पिली साड़ी खरीदी थी। और पार्लर में लेके जाके डार्क स्लट लुक वाला मेकअप कराके घर पे लाया था। सर ऑफिस से आने से एक घंटे पहले मुझे पटियाला पहना के बैडरूम में रुकने बोला और मुझे जो भी सर करें उससे चुप चाप सहने बोला। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मगर पैसो के लिए मैंने बोला की सेह लेंगे थोड़ा। वैसे भी मैडम छोड़ के किसी को समझेगा नहीं की मैं कोण हु। ना की घर के नौकरों को और ना ही सर जी को।
मुझे बैडरूम में सर घर में आने की आवाज़ आयी। मैडम ने पूरे घर को खुशबू वाली कैंडल से सजाया था। खाना बनने के बाद सारे नौकरों को भी कल तक छुट्टी दी गयी था। मैडम सर को प्यार से उनके बैडरूम तक लेके आयी। बैडरूम के दरवाज़े तक आने के बाद मैडम ने सर को रुकैया। और अंदर एक सरप्राइज है बोलके बैडरूम का दरवाज़ा धीरे से खोल दिया। बैडरूम में दिवाली की कलरफुल लाइट की लड़िया जल रही थी। फूलों के पत्ते बेड पर बिछाये हुए थे। एक सेक्सी सी सैक्रोफोन की म्यूजिक बज रही थी।
"ये है अतुल। हमारे स्कूल में डिजाइनिंग का काम करता है। बहोत शर्मीला है। अपनी कोई बात मना नहीं करेगा। " ऐसे बोलके मैडम ने सर को अंदर धकेला। और दरवाजा बंद करते हुयी नशीली आवाज़ से बोली ," एन्जॉय योर वर्जिन लौंडा ", और दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।
मैं बेड पर घुटनों को मुँह तक बेंड करके बैठा हुआ था। सर को जैसे मैंने देखा तो मेरे हाथ पाँव कांपने लगे थे। एक छह फुट से ऊँचा बंधा तगड़ी छाती और लम्बे बालों के साथ मॉन्स्टर लग रहा था। लग रहा था की कोई आखाड़े में आया है और अपने सामने वाले को धूल छँटाके जायेगा। ४० की उम्र में इतना जोशीला बदन में देख के ही हक्का बक्का हो गया। कुछ वक़्त के लिए लड़का होके भी मुझे उनके शरीर को छूने की लालसा पैदा हुयी थी। और अनजाने में मेरा शिश्न उठ के खड़ा हो गया था। और छोटीसी पैंटी के बाहर आके सलवार तक पहुँच गया था। मैंने दोनों पैरो से उससे दबाने की कोशिश की। और सर को देखने लगा।
सर एक एक करके सारे कपडे उतारने लगे थे। शायद उन्हें फ्रेश होना था पहले। क्यों के वो मेरी तरफ ध्यान भी नहीं दे रहे थे। मुझे अनदेखा करके उन्होंने अपनी अंडरवियर भी निकाल के बैडरूम के बाथ्रोमं फ्रेश होने चले गए। अभी मुझे थोड़ी जलन हो ने लगी थी। एक घंटे से कोई किसीका इंतज़ार करें और वो कुछ पल के के लिए देखे भी न। में उठ गया और बाजू वाले मिरर में खुद को देखा और मेकअप और दुपट्टा अछेसे करने लगा। पता नहीं क्यों में अभी लड़कियों जैसे ईर्ष्या कर रहा था। अचानक बाथरूम के दरवाज़ा खुलने का आवाज़ आया और एक गिला वैक्स किया हुआ मसल से भरपूर नंगा बदन मेरी और आ रहा था। मेरे दोनों कंधे पकड़े और एक सांस में मुझे ऊपर उठाया। मेरा दुपट्टा निचे गिर गया। में घबरा गया। अपने पैर हिलाने लगा। चिल्लाने की कोशिश की। तभी उन्होंने मुझे बेड पर पटक दिया और मेरी आवाज़ गले में ही अटक गयी। झटपटी में वो मेरी ओर कूदे और मेरी सलवार निचे खिंच दी। निचे खींचते ही मेरा मासूम सा शिश्न पैंटी से बाहर निकल के बाहर झाँक रहा था। मैं सेहम गया और आँखे जोर से बंद कर के दर से लेट गया। मगर मेरा शिश्न देख कर सर रुक गए और शांत हो के बड़ी नाजुक हांथो से मेरे शिश्न को छुआ। मैंने आँखे खोली। सर अब मुझे नाशिली आँखों से देखने लगे। मुझे और ही दर लगने लगा। उन्होंने मेरी पैंटी निकली और मेरे शिश्न पर अपने नितम्ब रख के मेरे ओठ चूमने लगे। दुनिया की सबसे घिनौनी हरकत मुझे लगी। और फिर भी में अपने संस्कारो और परम्परो को भूल इस मुकाम में पहुंच गया। सर कमर हिलाके पूरा बेड आगे पीछे करने लगे। मेरा शिश्न का होता स्पर्श मुझे चेतना दे रहा था। सर जी की जीभ मेरे मुँह के अंदर तक जा के दांत गईं रही थी। ऐसे घिन में भी मेरी रूह इस सम्भोग को साथ देने जा रही थी। मेरा शिश्न घर्षण से बड़ा होने लगा था। और जैसे ही ये बात सर जी के दिमाग में आयी उन्होंने वही शिश्न अपनी नितम्भों के अंदर डाला और अपनी पूरी ताक़त से सेक्स करने लगे।
और में चुप चाप सहने लगा। सर जी का बड़ा सा शिश्न भी में पेट के ऊपर घर्षण करके चिप छिपा पानी पेट पर छोड़ गया। जैसे ही सर जी का पानी गिरा वो उठ के खड़े हो गए और उनके लम्बे शिश्न को देख के मेरा पानी भी निकल गया।
सर जी कपडे पहन ने लगे। मैंने भी हांफते हाँफते पैंटी और सलवार ऊपर कर ली। और लेट कर ही आँखे मूंद कर सोचने लगा की अभी मेरे साथ क्या हुआ। सही हुआ या गलत हुआ। मगर जो भी हुआ अजीब था मगर मजा तो आया। और मेरी अंदर की छुप्पी औरत आज उछल रही थी। मेरी माँ की में बेटियाँ हु मै ऐसे लगने लगा था। अभी मेरे मन का बवंडर शांत हो गया। अपना नसीब ही ये था की में मेरी माँ को उनकी बेटी वापस मिले।
..
...
....
"माँ .. मैं तुम्हारा अतुल। पहचाना नहीं ?" मैंने अपनी मुस्कान से माँ के आँखों में देखा। कांपते हुए हाथों से उन्होंने मेरे गालों पर हाथ फेरा। अभी उनको यकीन हो गया की मैं उनका लड़का ही हु।
"मगर बेटा , ये सब क्या ? कैसे??" माँ की आँखों में झट से पानी आया।
"माँ, अब मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगी। कभी भी अकेला नहीं रखूंगी। बहोत बड़ी बन गयी हु मैं माँ। इसलिए अभी तक मिल नहीं पायी। " , एक लहराते हुए आत्मविश्वास के साथ मैंने माँ को गले लगाया।
"नारिषा मैडम ने तुम्हे नया घर भी दिया है क्या बेटा ?"
"माँ , वो क्या देगी। वो तो तलाक़ के बाद रस्ते की धूल चांट रही होगी। "
"अच्छा तुम्हारे सर ने दूसरी शादी कर ली ? मगर किसके साथ ??"
"माँ, तुम्हारी बेटी 'अदा' के साथ ... ।"
"बेटी, कोण चाहिए तुम्हे। किसीको ढूंढ रही हो क्या ?", बड़ी ही मधुरता से सेहमी आवाज़ में वो पूछ रही थी।
"क्या आपने मुझे पहचाना नहीं ?" मैंने चेहरे पर हलकी सी मुस्कान ला कर पूछा। माँ को मुझे पहचानना अब काफी मुश्किल था। में १ साल के बाद घर लौटा था। ऊपर से सब चेंज हो गया था। मेरी आवाज़ , मेरे कपडे, मेरा रहन-सहन , मेरी अदा और मेरा जेंडर !!
जी हां। जब अब मैं घर आया था तो में दूसरी बार लड़कीयो के कपड़ो में था। मगर इस बार में हमेशा से लड़की बन गया था। बेशक अभी तक मेरे शरीर को ऑपरेशन करके लड़की बनाया था मगर मुझे पता था की में हमेशा से यही चाहता था। लड़की की शरीर में आने के बाद चीज़े काफी आसान हो गयी है। मगर लड़का होके लड़की बनके रहना इसमें भी कुछ और बात थी। अभी मैं मेरी माँ के सामने एक हैंडलूम नीली साड़ी में खड़ा था। शार्ट जैकेट ब्लाउज डार्क ब्लू रंग का। लम्बे काले स्ट्रेट बाल और गले में फैंसी नेकलेस। नार्मल मेकअप और पूरी वैक्स की हुयी पतली बॉडी। उसपे हील की लम्बी सैंडल। कोण कैसे पहचान सकता है की में अतुल ही हु।
मुझे याद है उस दिन मुझे मेरी मैडम ने ऑफिस बुलाया था और सर के लिए मुझे खुदको बकरा बना के हलाल होने भेज दिया था। मुझे याद है उस दिन की बैचेनी। मैंने पैसो के लिए अपने आप को बेच दिया था। बहोत ही घिन आ रही थी मुझे उस दिन। मगर मैं शुक्रिया करता हु भगवान् का की उसी चीज़ के वजह से मुझे आज सब कुछ मिल गया। और आज मैं अपनी माँ को भी इसी कामयाबी में शामिल कराने मेरे नए घर में ले के जाने वाला हु।
उस दिन की बात है जब सर का बर्थडे था। मैं और मैडम ने मेरे लिए एक पटिआला सूट , एक बेबी डॉल सूट और एक पैडेड सफ़ेद ब्लाउज और पिली साड़ी खरीदी थी। और पार्लर में लेके जाके डार्क स्लट लुक वाला मेकअप कराके घर पे लाया था। सर ऑफिस से आने से एक घंटे पहले मुझे पटियाला पहना के बैडरूम में रुकने बोला और मुझे जो भी सर करें उससे चुप चाप सहने बोला। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मगर पैसो के लिए मैंने बोला की सेह लेंगे थोड़ा। वैसे भी मैडम छोड़ के किसी को समझेगा नहीं की मैं कोण हु। ना की घर के नौकरों को और ना ही सर जी को।
मुझे बैडरूम में सर घर में आने की आवाज़ आयी। मैडम ने पूरे घर को खुशबू वाली कैंडल से सजाया था। खाना बनने के बाद सारे नौकरों को भी कल तक छुट्टी दी गयी था। मैडम सर को प्यार से उनके बैडरूम तक लेके आयी। बैडरूम के दरवाज़े तक आने के बाद मैडम ने सर को रुकैया। और अंदर एक सरप्राइज है बोलके बैडरूम का दरवाज़ा धीरे से खोल दिया। बैडरूम में दिवाली की कलरफुल लाइट की लड़िया जल रही थी। फूलों के पत्ते बेड पर बिछाये हुए थे। एक सेक्सी सी सैक्रोफोन की म्यूजिक बज रही थी।
"ये है अतुल। हमारे स्कूल में डिजाइनिंग का काम करता है। बहोत शर्मीला है। अपनी कोई बात मना नहीं करेगा। " ऐसे बोलके मैडम ने सर को अंदर धकेला। और दरवाजा बंद करते हुयी नशीली आवाज़ से बोली ," एन्जॉय योर वर्जिन लौंडा ", और दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।
मैं बेड पर घुटनों को मुँह तक बेंड करके बैठा हुआ था। सर को जैसे मैंने देखा तो मेरे हाथ पाँव कांपने लगे थे। एक छह फुट से ऊँचा बंधा तगड़ी छाती और लम्बे बालों के साथ मॉन्स्टर लग रहा था। लग रहा था की कोई आखाड़े में आया है और अपने सामने वाले को धूल छँटाके जायेगा। ४० की उम्र में इतना जोशीला बदन में देख के ही हक्का बक्का हो गया। कुछ वक़्त के लिए लड़का होके भी मुझे उनके शरीर को छूने की लालसा पैदा हुयी थी। और अनजाने में मेरा शिश्न उठ के खड़ा हो गया था। और छोटीसी पैंटी के बाहर आके सलवार तक पहुँच गया था। मैंने दोनों पैरो से उससे दबाने की कोशिश की। और सर को देखने लगा।
सर एक एक करके सारे कपडे उतारने लगे थे। शायद उन्हें फ्रेश होना था पहले। क्यों के वो मेरी तरफ ध्यान भी नहीं दे रहे थे। मुझे अनदेखा करके उन्होंने अपनी अंडरवियर भी निकाल के बैडरूम के बाथ्रोमं फ्रेश होने चले गए। अभी मुझे थोड़ी जलन हो ने लगी थी। एक घंटे से कोई किसीका इंतज़ार करें और वो कुछ पल के के लिए देखे भी न। में उठ गया और बाजू वाले मिरर में खुद को देखा और मेकअप और दुपट्टा अछेसे करने लगा। पता नहीं क्यों में अभी लड़कियों जैसे ईर्ष्या कर रहा था। अचानक बाथरूम के दरवाज़ा खुलने का आवाज़ आया और एक गिला वैक्स किया हुआ मसल से भरपूर नंगा बदन मेरी और आ रहा था। मेरे दोनों कंधे पकड़े और एक सांस में मुझे ऊपर उठाया। मेरा दुपट्टा निचे गिर गया। में घबरा गया। अपने पैर हिलाने लगा। चिल्लाने की कोशिश की। तभी उन्होंने मुझे बेड पर पटक दिया और मेरी आवाज़ गले में ही अटक गयी। झटपटी में वो मेरी ओर कूदे और मेरी सलवार निचे खिंच दी। निचे खींचते ही मेरा मासूम सा शिश्न पैंटी से बाहर निकल के बाहर झाँक रहा था। मैं सेहम गया और आँखे जोर से बंद कर के दर से लेट गया। मगर मेरा शिश्न देख कर सर रुक गए और शांत हो के बड़ी नाजुक हांथो से मेरे शिश्न को छुआ। मैंने आँखे खोली। सर अब मुझे नाशिली आँखों से देखने लगे। मुझे और ही दर लगने लगा। उन्होंने मेरी पैंटी निकली और मेरे शिश्न पर अपने नितम्ब रख के मेरे ओठ चूमने लगे। दुनिया की सबसे घिनौनी हरकत मुझे लगी। और फिर भी में अपने संस्कारो और परम्परो को भूल इस मुकाम में पहुंच गया। सर कमर हिलाके पूरा बेड आगे पीछे करने लगे। मेरा शिश्न का होता स्पर्श मुझे चेतना दे रहा था। सर जी की जीभ मेरे मुँह के अंदर तक जा के दांत गईं रही थी। ऐसे घिन में भी मेरी रूह इस सम्भोग को साथ देने जा रही थी। मेरा शिश्न घर्षण से बड़ा होने लगा था। और जैसे ही ये बात सर जी के दिमाग में आयी उन्होंने वही शिश्न अपनी नितम्भों के अंदर डाला और अपनी पूरी ताक़त से सेक्स करने लगे।
और में चुप चाप सहने लगा। सर जी का बड़ा सा शिश्न भी में पेट के ऊपर घर्षण करके चिप छिपा पानी पेट पर छोड़ गया। जैसे ही सर जी का पानी गिरा वो उठ के खड़े हो गए और उनके लम्बे शिश्न को देख के मेरा पानी भी निकल गया।
सर जी कपडे पहन ने लगे। मैंने भी हांफते हाँफते पैंटी और सलवार ऊपर कर ली। और लेट कर ही आँखे मूंद कर सोचने लगा की अभी मेरे साथ क्या हुआ। सही हुआ या गलत हुआ। मगर जो भी हुआ अजीब था मगर मजा तो आया। और मेरी अंदर की छुप्पी औरत आज उछल रही थी। मेरी माँ की में बेटियाँ हु मै ऐसे लगने लगा था। अभी मेरे मन का बवंडर शांत हो गया। अपना नसीब ही ये था की में मेरी माँ को उनकी बेटी वापस मिले।
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"माँ .. मैं तुम्हारा अतुल। पहचाना नहीं ?" मैंने अपनी मुस्कान से माँ के आँखों में देखा। कांपते हुए हाथों से उन्होंने मेरे गालों पर हाथ फेरा। अभी उनको यकीन हो गया की मैं उनका लड़का ही हु।
"मगर बेटा , ये सब क्या ? कैसे??" माँ की आँखों में झट से पानी आया।
"माँ, अब मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगी। कभी भी अकेला नहीं रखूंगी। बहोत बड़ी बन गयी हु मैं माँ। इसलिए अभी तक मिल नहीं पायी। " , एक लहराते हुए आत्मविश्वास के साथ मैंने माँ को गले लगाया।
"नारिषा मैडम ने तुम्हे नया घर भी दिया है क्या बेटा ?"
"माँ , वो क्या देगी। वो तो तलाक़ के बाद रस्ते की धूल चांट रही होगी। "
"अच्छा तुम्हारे सर ने दूसरी शादी कर ली ? मगर किसके साथ ??"
"माँ, तुम्हारी बेटी 'अदा' के साथ ... ।"
Kahani achi hai
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