Monday, 6 November 2017

nilima

घर में वो अकेली थी. कुर्सी पर अपने पैरो को एक के ऊपर एक रखे एक हलकी सी सैटिन की साड़ी पहनी बैठी हुई वो अपने काम में मगन थी. उसकी साड़ी पंखे की तेज़ हवा में लहरा रही थी. उसकी साड़ी का ढीला ढाला ब्लाउज देख कर लग रहा था जैसे उसका वज़न पिछले कुछ समय में काफी कम हो गया है इसलिए आस्तीन अच्छी तरह से अब फिट नहीं आ रही थी. शायद इसलिए वो अपने हाथो से अपनी दूसरी साड़ियों के ब्लाउज को सुई धागे से सिलकर उनकी फिटिंग सुधार रही थी. या फिर जो उसके मन में जो उसे परेशान कर रहा था उससे वो दूर भागना चाह रही थी और ब्लाउज की फिटिंग ठीक करना तो सिर्फ एक बहाना था.
उसके बगल में छोटे से स्टूल पर रखी फोटो फ्रेम में एक औरत के बगल में खड़ी हुई उसकी फोटो देखकर पता चल रहा था कि पहले वो थोड़ी मोटी हुआ करती थी. पर अब?
“आउच” गलती से सुई उसकी ऊँगली में चुभ गयी. पर उसकी इस कराह को सुनने वाला भी तो कोई नहीं था.
“जब एक आदमी घर में साड़ी पहनकर बैठा रहे तो कोई भी पत्नी ऐसे आदमी को छोड़ ही देगी न?” उसके चाचा की कही हुई बात उसके दिमाग में अब भी घूम रही थी. उसके चाचा भी कितने गलत थे. कैसे समझाती वो उनको? हाँ, ये सच है कि वो घर में कभी कभी साड़ी पहनकर रहती थी पर ये कारण नहीं था कि उसकी पत्नी ने उसे तलाक दे दिया. आखिर वो घर में निकम्मे बैठने वालो में से नहीं थी. बाहर की दुनिया में वो एक बहुत सफल बिज़नसमैन थी. एक आदमी के रूप में एक सॉफ्टवेर कंपनी खोली थी उसने जो आज भी बहुत बड़ी कंपनी है. पैसा शोहरत सब कुछ था उसके पास. बस कभी कभी घर में साड़ी पहनना अच्छा लगता था उसे.
ऐसा नहीं था कि उसके इस शौक के बारे में उसकी पत्नी को पहले से पता नहीं था. आखिर उन दोनों की मुलाक़ात जब अमेरिका के एक कॉलेज में हुई थी तब वो साड़ी ही तो पहने हुए था. बचपन से ही उसके मन में एक औरत की तरह सजने सँवरने की ललक थी. और जब अमेरिका में वो पढने गया था तो उसे हेलोवीन नाम के वहां मनाये जाने वाले त्यौहार में अपनी दिल की इच्छा पूरी करने का मौका मिल ही गया था. उस दिन वहां लोग विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनते है .. कई लड़के नर्स के कपडे भी पहनते है… या फिर लड़कियों के लम्बे सेक्सी गाउन. उसने भी मौका देखा और हेलोवीन के लिए साड़ी पहनकर निकल पड़ा था बाहर. लम्बे बालो का विग, एक कंधे पर टंगी हुई पर्स, कानो में बड़े बड़े झुमके, बड़ी सी ब्रा में बड़े नकली बूब्स, होंठो पर लाल लिपस्टिक और ऊँची हील की सैंडल पहनकर जब वो घर से बाहर निकला तो कई निगाहें उस पर पड़ रही थी. पर उस दिन वो बेफिक्र होकर औरत होने का आनंद ले रहा था.
पर हेलोवीन ठण्ड के दिनों में पड़ता है. ऐसी ठण्ड में वो ज्यादा देर यूँ ही बाहर नहीं रह सकता था इसलिए एक क्लब में चला गया था. वहीँ उसकी पत्नी रश्मि की नज़र उस पर पड़ी थी. वो भी उसी यूनिवर्सिटी में पढने भारत से आई थी. हेलोवीन पर एक औरत को साड़ी पहने देख, रश्मि का उस औरत से मिलने का मन हो गया था. वो हैरान थी कि जब उस औरत ने रश्मि को बताया कि वो निलेश नाम का लड़का है! पता नहीं क्यों निलेश ने रश्मि से अपने इस शौक के बारे में कुछ नहीं छुपाया. उसी दिन की वो फोटो थी जो आज भी निलेश के बगल के टेबल में रखी हुई फोटो फ्रेम में लगी हुई थी. निलेश और रश्मि की पहली मुलाकात की. और उस मुलाक़ात के कुछ समय बाद ही दोनों में प्यार परवान चढ़ गया था. रश्मि को निलेश या फिर उसके स्त्री रूप नीलिमा से कोई परेशानी नहीं थी. वहां तो वो खुद नीलिमा को अपने साथ बाहर भी ले जाती थी. नीलेश के तो जैसे सपने सच हो गए थे. दोनों ने अपनी पढाई पूरी और भारत वापस आकर शादी कर ली.

सच तो निलेश को ही पता था पर चाचा की बात ऐसे ही उसके मन से कहाँ जाने वाली थी. ब्लाउज की सिलाई करते करते बार बार जेहन में वही बात घूम रही थी. आखिर एक ब्लाउज की फिटिंग सही करने के बाद नीलिमा उठ खड़ी हुई. उसने अपने पल्लू को कमर में ठूंसा और उस अलमारी की ओर बढ़ गयी जहाँ ढेरो साड़ियाँ बेतरतीब पड़ी थी. छोटे से उस घर को देखकर ही लग रहा था कि वो वहां अभी अभी रहने आई है. अभी भी बहुत से बक्से रखे हुए थे जिनसे सामान निकाल कर लगाना बाकी था. नीलिमा ने अलमारी में अपने हाथ में पकडे हुए ब्लाउज से मैच करती हुई एक साड़ी ढूँढने की कोशिश की, और एक अच्छी सी साड़ी निकाल ली. फिर जल्दी से एक पेटीकोट और मैच करती सैंडल भी ढूंढ कर उसने बिस्तर पर रख दी.
शायद नीलिमा को कहीं बाहर जाना था, इसलिए वो अच्छी सी साड़ी ढूंढ रही थी. और फिर कमरे में एक कोने में रखे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर उसने अपनी पहनी हुई साड़ी उतारी और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी. ब्लाउज के अन्दर उसने जो ब्रा पहनी थी, काफी महँगी प्रतीत होती थी. पर फिर भी वो ब्रा उसे कुछ असहज लग रही थी. आखिर नीलिमा का वज़न बहुत कम हो गया था और अब वो ब्रा भी उसके लिए थोड़ी बड़ी हो रही थी. उसने फिर अपनी पीठ पर पीछे हाथ ले जाते हुए अपनी ब्रा का हुक और टाइट किया और कंधो पर स्ट्रैप को भी थोडा कस दिया. उसने खुद को आईने में देखा. अब उसमे पहले जैसी बात नहीं थी. पहले तो सीने पर आसानी से क्लीवेज बन जाता था उसका पर अब दुबली होने के बाद से क्लीवेज बनाना मुश्किल था. पर अब उसे तैयार तो होना ही था अब जो भी हो.
नीलिमा ने अपने बालो का सर पे जुड़ा बनाया और दूसरा ब्लाउज पहनने लगी. आस्तीन अब उसकी बांहों पर अच्छी फिट आ रही थी. ब्लाउज का सामने से एक एक हुक लगाते हुए वो पुरानी बातों में फिर से खो गयी. शादी के बाद पहले १ साल तो रश्मि और निलेश में सब कुछ ठीक रहा पर फिर रश्मि बदलती चली गयी. सच कहा जाए तो रश्मि कभी बदली नहीं थी. वो हमेशा से ही वैसी थी. वो जो चाहती थी वो ही करती थी और चाहती थी कि उसका पति भी उसी की तरह सोचे और करे. नीलेश पहले ख़ुशी ख़ुशी रश्मि की बातें मान लेता था पर धीरे धीरे उसे लगने लगा कि जैसे उसकी पर्सनालिटी रश्मि की जिद के आगे दबती जा रही है. रश्मि नीलेश की कोई बात नहीं सुनती थी और उसकी मनमानी के आगे नीलेश जितना हो सके रश्मि की हर इच्छा पूरी करने में लगा रहता. उसका पूरा समय जैसे रश्मि के इर्द-गिर्द ही उसकी फरमाइश पूरी करते निकल जाता. और फिर धीरे धीरे उसके मन में रश्मि के प्रति कडवाहट बढती जा रही थी. रश्मि कब उसपर नाराज़ हो जाए कोई ठिकाना नहीं होता. वो जो भी करता रश्मि उसमे गलती निकालती. फिर भी वो प्यार से सब कुछ करने को तैयार रहता. लेकिन उसकी इसी बात को रश्मि उसकी कमजोरी समझती.
“तुम्हारे जैसा दब्बू पति किसी का भी न हो. कैसे डरे डरे रहते हो. कभी खुद से कभी अपनी अक्ल भी उपयोग कर लिया करो”, रश्मि ने एक दिन निलेश से कहा. बेचारा निलेश … पत्नी की बात मानता था तो दब्बू और न माने तो घर में लडाई झगडा. वो थक गया था इस जीवन से. घर के बाहर तो उसकी इतनी इज्ज़त थी… हर कोई उसकी कंपनी में उसके साथ काम करना चाहता था पर घर के अन्दर उसकी कोई इज्ज़त न थी. और यही कारण बना उन दोनों के बीच तलाक का.
नीलिमा ने अब पेटीकोट पहन लिया था, और अब जल्दी जल्दी साड़ी पहनने लगी. ये साड़ी उसकी माँ की थी. माँ के गुजरने के बाद नीलिमा के पास माँ की सभी साड़ियाँ आ गयी थी. कभी उसने अपनी माँ से कहा तो नहीं था पर दिल ही दिल में वो शुक्रगुज़ार थी कि अपनी माँ की साड़ी पहनकर वो अपनी माँ की बेटी होना महसूस कर पाती है. कभी कभी वो सोचती है कि कितना अच्छा होता यदि वो कम से कम एक बार अपनी माँ के साथ नीलिमा बनकर मिलती. एक बेटी बनकर अपनी प्यारी माँ को गले लगाती. कई बार एक बेटे और माँ के बीच एक दूरी होती है जो माँ-बेटी के बीच नहीं होती. काश वो उस दूरी को ख़त्म कर पाती और गर्व से अपनी माँ से कह पाती कि वो उनको कितना प्यार करती थी और किस तरह वो अपनी माँ की तरह बनना चाहती थी.
नीलिमा ने अपने सर पर जुड़ा बनाया और झटपट तैयार हो गयी. अपनी माँ की साड़ी पहन कर वो ख़ुश थी.
अपनी साड़ी को तह कर निचे झुककर अपनी कमर पर प्लेट बनती हुई नीलिमा कुछ पल के लिए अपनी माँ को याद करके खुश हो गयी थी. और फिर उसने कंधे पर साड़ी का पल्लू फैलाया और फिर खुद को आईने में देख वैसे पोज़ करने लगी जैसे कभी उसकी माँ करती थी. नीलिमा में उसकी माँ की छवि थी. और फिर उसने अपने पल्लू की लम्बाई नाप कर अपनी ब्लाउज पर पल्लू को पिन किया, और एक बार फिर अपनी कमर पर प्लेट्स को थोडा सुधारा. उसने पलट कर खुद को आईने में पीछे से देखा. कमर पर साड़ी थोड़ी उखड़ी हुई सी लग रही थी तो उसने अपने हाथ से खींचते हुए उसे थोडा ठीक किया. और फिर अपनी हाथ में पहनी चूड़ियों में लगी हुई एक सेफ्टी पिन को निकालकर अपनी कमर के निचे की प्लेट्स पर लगा दी.
और फिर अपने आँचल को अपने दांये हाथ से ऊपर खिंच कर खुदको देखने लगी. खुले पल्लू के साथ साड़ी में उसके स्तनों का आकार बहुत सुन्दर तरह से उभर कर दिख रहा था. नीलिमा खुद को देखकर खुश थी अब. जैसे अपने सारे दुखो को भूल गई थी वो. फिर उसने अपने माथे पर लगी छोटी सी बिंदी को हटाकर एक बड़ी सी लाल बिंदी लगायी बिलकुल अपनी माँ की तरह. भले नीलिमा का तलाक हो गया हो, पर लाल बिंदी लगाना सिर्फ शादी-शुदा औरतों का अधिकार थोड़ी होता है? और फिर अपनी आँखों में काजल लगाने के बाद नीलिमा ने अपने हाथ में पहनी हुई घडी में समय देखा. अब निकलने का समय लगभग हो चूका था. नीलिमा ने झटपट हल्का सा मेकअप किया और कंधे पर पर्स टंगाकर निकलने को तैयार हो गयी. घर से बाहर निकल कर उसने ताला लगाया और चाभी अपनी पर्स में रख दी. उसे ताला लगाते उसके पड़ोस की एक औरत देख रही थी जो नीलिमा को देख थोड़ी आश्चर्य में थी. आखिर नीलिमा बिल्डिंग में नयी नयी आई थी. नीलिमा ने उस औरत की ओर मुस्कुराकर देखा और आगे चल पड़ी.
बिल्डिंग से निचे उतरकर नीलिमा अपनी कार में बैठ कर अपनी सहेली सुलोचना के घर की तरफ चल पड़ी. सुलोचना नीलेश के दोस्त धीरज की पत्नी थी. जब निलेश और रश्मि का तलाक लगभग तय हो गया था और वकील उनके तलाक के पेपर फाइनल कर रहे थे, उन दिनों निलेश काफी डिप्रेशन में था. उसका वजन कम होने लगा था. और न जाने उसके मन में क्या सूझी थी कि एक दिन उसने अपने सारे अच्छे दोस्तों को उनकी बीवियों के साथ बुला लिया, और उन सभी को अपने अन्दर की औरत नीलिमा के बारे में बताया. दोस्तों के मन में भी उलझन थी कि कहीं निलेश हमेशा के लिए औरत तो नहीं बनने जा रहा है. पर निलेश ने सभी को शांत मन से समझाया कि वो सेक्स चेंज नहीं कर रहा है, बस उसे कभी कभी औरत बनना अच्छा लगता है.
क्योंकि निलेश हमेशा से सभी के साथ अच्छे सम्बन्ध रखता था, इसलिए उसके दोस्तों और उनकी बीवियों ने नीलिमा को अपने जीवन में स्वीकार कर लिया था. भले ही उसके दोस्तों को कभी समझ न आया कि निलेश ऐसा क्यों है. इसका जवाब तो निलेश के पास भी नहीं था. उसके बाद से कई बार वो अपने दोस्तों और उनके परिवार के साथ नीलिमा बन कर मिला था. आश्चर्य की बात ये थी कि उसके दोस्तों की पत्नियों ने उसे ज्यादा प्यार से अपने ग्रुप में शामिल कर लिया था. अब नीलिमा जब भी सबसे मिलने जाती, तो वो आदमियों से ज्यादा औरतों के साथ समय बिताती. उनके साथ शौपिंग से लेकर मेकअप सभी तरह की बातें करती. एक तरह से तलाक के दुःख को भुलाने में यह निलीमा के लिए भी अच्छा रहता था. और इसी तरह सुलोचना जो उसके दोस्त धीरज की पत्नी थी, नीलिमा की अच्छी सहेली बन गयी थी. सुलोचना ने आज नीलिमा को अपने घर पर बुलाया था. शायद उसे नीलिमा की चिंता थी. आखिर २ दिन पहले ही निलेश और रश्मि का तलाक कोर्ट से फाइनल हो गया था.
दोपहर का वक़्त था तो घर पर धीरज नहीं होगा. सिर्फ सुलोचना होगी. और सुलोचना से अकेले में निलेश के रूप में मिलना ठीक नहीं लगता इसलिए वो नीलिमा बनकर आई थी. नीलिमा ने सुलोचना के घर पहुँच कर दरवाज़े की घंटी बजाई. वो खुश थी कि अपनी सहेली से मिलेगी पर दिल से तैयार भी नहीं थी अभी किसी से मिलने को लेकर… दुख अभी भी ताज़ा था.
तभी एक सलवार सूट पहनी औरत ने दरवाज़ा खोला. वो सुलोचना थी. उसके चेहरे पर खूब बड़ी सी मुस्कान थी. “नीलिमा!!!”, सुलोचना ख़ुशी से लगभग चीख पड़ी और उसने तुरंत नीलिमा को प्यार से गले लगा लिया.
“चल अन्दर आ जा. वैसे बहुत सुन्दर लग रही है तू इस साड़ी में. पहली बार देख रही हूँ यह साड़ी.”, सुलोचना ने कहा.
“हां, बहुत कम पहनती हूँ ये साड़ी. मेरी माँ की है.”, नीलिमा ने कहा. अभी तक उसके चेहरे के भाव में दर्द था पर सुलोचना को देख उसके चेहरे पर ख़ुशी बढ़ रही थी.
“यह कंगन भी माँ के है क्या?”, सुलोचना ने नीलिमा की कलाई को पकड़ कर कहा.
“हाँ, पर तुझे कैसे पता चला?”, नीलिमा ने आश्चर्य से पूछा.
“अरे, थोड़े से ओल्ड फैशन है… पर बड़े सुन्दर है. बहुत जंच रहे है तुझ पर.”, सुलोचना अपनी गर्दन पर दुपट्टे को लपेटते हुए बोली.
“थैंक यू सु.. पर आज तू सलवार कुर्ती पहन कर… यह कैसे? तू तो कभी सलवार नहीं पहनती.”
“बस ऐसे ही यार… कोई ख़ास बात नहीं है. अच्छा सुन, मैं अन्दर समोसे तल ही रही थी. मैं लेकर आती हूँ. तू दो मिनट यहाँ सोफे पर बैठ. मैं अभी आई.”, सुलोचना ने कहा.
चल मैं भी आती हूँ तेरे साथ किचन में… खुशबु बड़ी अच्छी आ रही है.”, नीलिमा ने अपने पल्लू को अपनी कमर पर लपेट कर एक हाथ से पकड़ते हुए कहा जैसे किचन का काम करने को बस तैयार है वो. उसने यह सब अपनी माँ को देखकर सीखा था कि औरतें साड़ी पहनकर घर के काम कैसे करती है.
“ठीक है, तुझे अन्दर आना है तो आ जा.”, सुलोचना ने ख़ुशी ख़ुशी कहा.
दोनों औरतें अन्दर आ गयी. सुलोचना समोसे तलने में मग्न हो गयी.
“इतना तेल … सुलोचना,मैं मोटी हो जाऊंगी यह समोसे खाकर”, नीलिमा ने मजाकिया लहजे में कहा.
“तो हो जा न थोड़ी सी मोटी. कितना वजन कम हो गया है तेरा आलरेडी.”, सुलोचना बोली.
और फिर दोनों हँसने लगी. और फिर हँसते हँसते सुलोचना का दुपट्टा उसके एक कंधे से फिसलकर निचे गिर गया. तभी नीलिमा की नज़र सुलोचना की गर्दन पर गयी जो अब तक दुपट्टे से ढंकी हुई थी. दुधिया गोरी उसकी गर्दन पर एक निशान नीलिमा को दिखाई दिया. जिसे सुलोचना ने झट से अपने दुपट्टे से ढँक लिया.
निलेश के दोस्त की पत्नियों ने नीलिमा को अपने बीच एक औरत के रूप में ख़ुशी से स्वीकार कर लिया था.
नीलिमा आगे बढ़कर सुलोचना के दुपट्टे को हटाने लगी तो सुलोचना ने विरोध किया. पर नीलिमा रुकी नहीं. और उस निशान को देखकर बोली, “यह कैसे हुआ सुलोचना?”
“अरे छोड़ न कुछ नहीं है. समोसे तैयार है ” सुलोचना ने उस सवाल को टालना चाहा और समोसे प्लेट में निकालने लगी.
पर नीलिमा उस बात को ऐसे जाने नहीं देने वाली थी. उसने सुलोचना की दोनों बांहों को अपने हाथो से पकड़ा और बोली, “क्या धीरज तुझ पर हाथ उठाता है?”
सुलोचना के चेहरे की ख़ुशी जैसे गायब हो गयी. “छोड़ न नीलिमा तू कहाँ यह सब में पड़ रही है. पति पत्नी में यह सब चलता रहता है. चल हम गर्मागर्म समोसे खाते है.” सुलोचना एक बार फिर मुस्कुराने लगी.
पर नीलिमा को यकीन नहीं हो रहा था कि उसका दोस्त धीरज उसकी पत्नी पर हाथ उठाता है.
“कब से चल रहा है यह सुलोचना?”, नीलिमा ने चिंतित होकर पूछा.
पर जवाब देने की जगह, सुलोचना ने नीलिमा का हाथ छुडाकर समोसे बाहर के कमरे में लेकर आ गयी और सोफे पर बैठ गयी. नीलिमा भी उसकी बगल में बैठ गयी. सुलोचना अब शांत थी और नीलिमा उसकी ओर एक टक देख रही थी.
“सु… तू मेरी सहेली है न? मुझे बताएगी नहीं?”, नीलिमा ने सुलोचना की ओर प्यार से देखते हुए पूछा. सुलोचना की नज़रे झुक गयी तो नीलिमा ने अपने खुले पल्लू को कंधे तक उठाकर प्यार से अपने हाथो से सुलोचना के चेहरे को छुआ. नीलिमा के अन्दर की औरतों वाली भावुकता उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी.
“क्या बताऊँ नीलिमा? हर घर में यही तो होता है. पत्नी को कुछ न कुछ सैक्रिफाइस तो करना ही पड़ता है न? पति की इच्छा का सम्मान और उनकी हर बात मानना तो मेरा कर्त्तव्य है न?”, सुलोचना बोली पर मन ही मन वो जानती थी कि यह ठीक नहीं है. पति की हर उटपटांग बात मानना भी ठीक नहीं है.
“तू तो समझती है न नीलिमा कि कितने त्याग करने पड़ते है औरतो को. क्या क्या सहना पड़ता है. तू भी तो एक औरत है न नीलिमा? तू तो जानती ही है”, सुलोचना ने नीलिमा की ओर देख कर कहा.
सुलोचना सही कह रही थी. आखिर में निलेश और रश्मि के रिश्ते में वो किसी औरत की भाँती ही तो सैक्रिफाइस करती आ रही थी.
नीलिमा ने फिर अपनी सहेली की ओर देखा और दोनों सहेलियां ने एक दुसरे को गले लगा लिया और एक दुसरे को चुपचाप सांत्वना देने लगी. दोनों की आँखों में आँसूं थे. दोनों अपना अपना दुख जानते थे. पर दोनों एक ही तरह के दुख से तो गुज़र रही थी.
कुछ देर बाद दोनों अलग हुई और एक दुसरे का हाथ पकड़कर एक दुसरे को देखने लगी. नीलिमा ने अपने पल्लू से सुलोचना के आंसूं पोंछे और फिर उसकी ओर देखने लगी. जब दो लोग एक दुसरे को समझने लगते है और एक दुसरे का सहारा बनने लगते है तो उन दोनों के बीच एक आकर्षण उत्पन्न होता है. और उन दो सहेलियों के बीच भी यही हो रहा था. मन के साथ दोनों के तन भी एक दुसरे को सांत्वना देने के लिए मिलना चाहते थे. दोनों के बीच का वो आकर्षण एक ललक में बदल रहा था जो अब नीलिमा के होंठो पर बढ़ता ही जा रहा था. सुलोचना का हाथ पकडे पकडे नीलिमा के मन में सुलोचना को अपना बना लेने की भावना तीव्र होती जा रही थी. पर क्या उसे आगे बढ़ना चाहिए? वो मन ही मन ये सोचती रही.
तभी सुलोचना ने उस आकर्षण के जाल को तोड़ते हुए कहा, “चल पहले समोसे खाते है इससे पहले की ठन्डे हो जाए.” और फिर उसने एक प्लेट नीलिमा के हाथ में दी.
समोसे खाते खाते नीलिमा सोच में पड़ गयी थी. उसे अन्दर ही अन्दर अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि अपनी मुसीबत में पड़ी सहेली को वो चूमना चाह रही थी. ऐसे समय में मन में शारीरिक आकर्षण वाले ख्याल उसके मन में आये भी कैसे? शायद एक औरत के तन को छुए निलीमा को बहुत समय हो चूका था, इसलिए वो सुलोचना के बारे में ऐसा सोच रही थी. नीलिमा ने खुद ही अपने मन को समझाया. फिर उसने अपने साड़ी के आँचल को ज़रा ऊपर उठाकर अपने ब्लाउज को ढँक दिया जो अब बाहर दिखने लगा था. ब्लाउज की फिटिंग वाकई में अब चुस्त और आकर्षक हो चुकी थी.
सुलोचना हँसते हँसते नीलिमा की ओर देखते हुए सोच रही थी कि क्या वो भी कभी नीलिमा की तरह एक बार फिर रिश्तों के बंधन से आज़ाद हो सकेगी? कैसा होता यदि नीलिमा या निलेश उसका जीवन साथी होता? सुलोचना का दुपट्टा उसकी गर्दन से सरक कर उसकी कलाईयों तक निचे आ चूका था पर उसने उसे उठाने की ज़हमत नहीं की.
नीलिमा ने कमर के निचे अपनी साड़ी को सुधारा और अपनी सहेली सुलोचना की तरफ मुस्कुरा कर देखने लगी.

affair with neigbour

 Ever since childhood I loved to crossdress and whenever I used to get chance I used to crossdress. But my this habit came to an end once I ...